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अच्छी मानसिकता बच्चों पर अच्छी फिल्म बना सकती है

Nagesh-Kukunoorमुंबई, 16 दिसंबर | राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार नागेश कुकुनूर का मानना है कि भारत में बच्चों के लिए फिल्में बनाते वक्त कहीं अधिक कुशलता की जरूरत है। नागेश ने सोमवार को स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दौरान कहा, “भारत में जब भी बाल फिल्मों की बात आती है तो दिमाग में हंसी-मजाक जैसे ख्याल ही आते हैं। यह सबसे बड़ी समस्या है। अगर हम अपनी मानसिकता बदलें तो बच्चों पर कई अच्छी फिल्में बन सकती हैं।”

नागेश ने कहा, “अगर आप विदेशों की एनीमेशन फिल्मों को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि उन फिल्मों का लुत्फ बच्चों के साथ ही बड़े भी उठाते हैं।”

नागेश से जब सवाल किया गया कि क्या भारत में बाल फिल्मों की जरूरत है, तो उनका कहना था, “बिल्कुल, फिल्म कला का रूप है जिससे व्यापार हमेशा ही जुड़ा रहा है। अगर हम सही मायने में बाल फिल्में बनाना शुरू करें तो इसका व्यावसायिक लाभ भी जरूर मिल सकता है।”

नागेश की हाल में ‘धनक’ शीर्षक वाली बाल फिल्म बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीत चुकी है।

नागेश की फिल्म ‘इकबाल’, ‘रॉकफोर्ड और ‘आशाएं’ में बच्चों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई गई थीं।

उनका कहना है, “हमारे सामने समस्या है और हम सभी इससे जूझ रहे हैं। बाल फिल्मों का अपना फायदा भी है और नुकसान भी है।”

मराठी फिल्म ‘किल्ला’ को लेकर कुकनूर ने कहा, “साल में अगर 3-4 फिल्में ऐसी बनती हैं जो 10 लाख का व्यापार करें तो आप देखेंगे कि उन्हें कोई नहीं बनाएगा। इन्हें केवल वही बनाता है जो जोखिम उठा सकता है।”

उन्होंने बताया, “हम ऐसी फिल्मों को फिल्म समारोह में ले जाने के लिए बनाते हैं। लोग ऐसी फिल्मों की सराहना करते हैं लेकिन इन्हें सिनेमाघरों में प्रदर्शित नहीं किया जाता।”

नागेश ने उदाहरण देते हुए कहा, “फिल्म ‘हनुमान’ और ‘स्टैनली का डिब्बा’ बाल फिल्में थी जो अच्छी रहीं। लेकिन दूसरी बाल फिल्में ‘भूतनाथ रिट्नर्स’ और ‘तारे जमीं पर’ इसलिए अच्छी रहीं, क्योंकि उनमें अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे बड़े सितारे शामिल थे।”

उन्होंने कहा, “बड़े सितारों के शामिल होने की वजह से बाल फिल्मों को अधिक दर्शक मिलते हैं लेकिन यह जोखिम लेने के लिए हर कोई तैयार नहीं होता।”

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