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निर्भया कांड : न्‍यायप्रणाली को हिलाकर रख दिया था इस अमानवीय कृत्‍य ने

निर्भया कांड, उम्मीदों की लौ के बीच जिंदा हैं कई सवाल, अमानवीयता की पराकाष्ठा

मोनिका चौहान
नई दिल्ली| भारतीय इतिहास के पन्नों में शूरवीरों की गाथाओं के साथ 16 दिसंबर, 2012 का वह काला पन्ना भी दर्ज हो गया है, जिसने पुरुषसत्ता और सामंती मानसिकता के लिजलिजे कीचड़ में मदमस्त डूबे भारतीय समाज को झकझोर कर रख दिया। इसे एक दुर्घटना कहना शायद गलत होगा, क्योंकि यह अमानवीयता की वह पराकाष्ठा थी, जिसने न्याय प्रणाली को भी हिलाकर रख दिया। निर्भया कांड को आसानी से भुला पाना संभव नहीं। दुष्कर्म के लगातार बढ़ रहे मामलों के कारण यह पुराना घाव बार-बार हरा हो उठता है। दिल्ली में हुए इस बर्बर कांड के बाद सड़कों पर हजारों युवा उतरे।  कड़े कानून के लिए रायसीना हिल्स के सीने पर चढ़ युवाओं ने नारे बुलंद किए, लाठियां खाईं, कड़ाके की ठंड में जलतोप की बौछारों से भीगे। देश के कई शहरों में भी आक्रोश प्रदर्शन हुआ, लेकिन दुष्कर्म का सिलसिला थमा नहीं। क्यों? यह बड़ा सवाल है। अभी इसी 11 दिसंबर को दिल्ली के नेब सराय में देर शाम सात साल की एक मासूम के साथ दुष्कर्म की वारदात हुई, जिसमें पुलिस ने 16 साल के एक नाबालिग को गिरफ्तार किया है। वहीं, 12 दिसंबर को 14 साल की एक लड़की के साथ छह लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। इस तरह के मामलों से साफ है कि दरिंदों को कानून का खौफ नहीं है।

सरकार केंद्र की हों या राज्यों की, नारा देती ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ लेकिन मासूम बच्चियों तक के साथ हो रही घिनौनी वारदातों की फिक्र किसी को नहीं, सभी मौन हैं। दुष्कर्म पीड़िताओं को समाज तिरस्कार की नजरों से देखता है। इनके लिए समुचित योजना भी नहीं है। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने आईएएनएस से साफ कहा, “देश में दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए उचित पुनर्वास योजना नहीं है। हमारे पास पर्याप्त सुविधाएं हैं, लेकिन उचित योजना नहीं है।”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अक्टूबर में दिल्ली में एक ही दिन दो नाबालिग बच्चियों के साथ हुई दुष्कर्म की वारदात के बाद केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कानून व्यवस्था राज्य सरकार के हाथ में सौंपने की बात कही थी। इस मामले पर जब स्वाति ने कहा, “देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पास पुलिस और कानून व्यवस्था की बागडोर है, लेकिन दिल्ली में ही यह व्यवस्था नहीं है। यहां कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी ‘पॉलीटिकल लीडर’ राजनाथ सिंह पर है।” उन्होंने कहा, “ऐसे मामलों पर अलग-अलग तरह से काम करने पर समस्या उत्पन्न होती है और इसीलिए, हमने राजनाथ जी के सामने एक आला समिति के गठन का प्रस्ताव रखा है। कम से कम महीने में दो बार पुलिस, सरकार और हम बैठक करें और एकजुट होकर इस तरह की समस्याओं का समाधान निकालें।” राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, दुष्कर्म के मामलों में दिल्ली अन्य राज्यों के मुकाबले शीर्ष पर है। वर्ष 2014 में दिल्ली में 1,813 मामले दर्ज हुए, जबकि 2013 में 1,441 मामले दर्ज हुए।

विभिन्न संगठनों द्वारा अलग-अलग स्तर पर किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि नाबालिगों से दुष्कर्म के मामले बढ़ रहे हैं। सरकार द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में 46 प्रतिशत दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग हैं। राज्यसभा द्वारा 10 दिसंबर, 2015 को दी गई जानकारी के मुताबिक, इस साल 31 अक्टूबर तक लगभग 1,856 दुष्कर्म मामले दर्ज किए गए और इनमें 824 मामलों में पीड़ित नाबालिग हैं। इस सप्ताह दिल्ली में हुई दुष्कर्म की घटनाओं में अपराधी भी नाबालिग हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया कांड मामले में नाबालिग आरोपी की रिहाई के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर फैसला सोमवार को सुरक्षित रख लिया गया। स्वामी ने अपनी याचिका में नाबालिग में सुधार पर संदेह जताते हुए उसे सुधार गृह में ही रखने का अनुरोध किया है।

नाबालिग अपराधी को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के आदेश पर 20 दिसंबर को रिहा किया जाना है, लेकिन केंद्र सरकार ने भी यह कहते हुए इस अवधि को बढ़ाने का अनुरोध किया है कि उसकी रिहाई के बाद जो कुछ आवश्यक कदम उठाए जाने हैं, वे अभी पूरे नहीं हुए हैं। भाजपा नेता स्वामी के नाबालिग आरोपी से संबंधित अनुरोध के बारे में जब स्वाति से पूछा गया, तो उन्होंने इस पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही यह बात भी सामने आई है कि रिहाई के बाद नाबालिग आरोपी को घर भेजने के बजाय, एक साल के लिए किसी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) में रखा जाए। नाबालिग को इस तरह किसी एनजीओ में रखना कितना कारगार हो सकता है, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जनसाहस सामाजिक विकास समाज संस्था से आशीष शेख ने आईएएनएस से कहा, “हमारे यहां नाबालिगों के लिए कानून बने हुए हैं, लेकिन इस संबंध में एक व्यापक कार्यक्रम की जरूरत है। जिसके तहत नाबालिगों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था और दुष्कर्म पीड़ितों तथा महिला सशक्तीकरण की ओर काम करने वाली संस्थाएं आपस में चर्चा करें और एक रोकथाम प्रक्रिया लागू हो।”

बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान के टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ में आई जनसाहस संस्था ने पिछले साल निर्भया अभियान चलाया, जो जागरूकता फैलाने तथा दुष्कर्म और यौन शोषण पीड़ितों के लिए न्याय और सम्मानजनक जीवन के साथ-साथ समर्थन प्रणाली का निर्माण करने की ओर अग्रसर है। इससे उम्मीदें बंधी हैं। आशीष शेख से जब इस अभियान में मिले अनुभव के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “इसमें हमने देखा है कि अगर हम पीड़ित को ही नेतृत्व की कमान दें या उन्हें अपने हक के लिए लड़ने के लिए सशक्त करें, तो काफी बदलाव आएगा। इस तरह के प्रयास हमारी संस्था द्वारा किए गए हैं और इससे यह सामने आया है कि इससे उन इलाकों में रहने वाले लोगों की मानसिकता में प्रभाव पड़ता है, जहां इस तरह की घटनाओं के बाद पीड़िता अपने हक के लिए लड़ती हैं।” देश में बढ़ रहे दुष्कर्म के मामलों के पीछे मुख्य कारणों और इनमें कमी लाने के लिए किए जाने वाले सुधारों के बारे में आम नागरिकों की क्या प्रतिक्रिया है, आइए यह भी जान लें।

दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में रहने वाले रेल कर्मचारी विनोद नेगी से जब इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि समाज की मानसिकता को बदलने की जरूरत है। महिलाओं को अब भी कमतर आंका जाता है, जो सही नहीं। वहीं, दूसरी ओर गीता चौहान ने कहा, “पुरुष अब भी स्वतंत्र रूप से कहीं भी आ जा सकते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए नियम अलग हैं। देश में बढ़ रहे दुष्कर्म के मामलों के कारण पुरुष और महिला में समानता के स्तर कायम करना असंभव ही लगता है।” दिल्ली विश्विद्यालय के वेंकेटेश्वर कॉलेज की पूर्व छात्रा पूजा भंडारी ने कहा, “दिल्ली में बढ़ रही वारदातों के कारण अभिभावक अपनी बेटियों को घर से बाहर भेजने में भी कतराते हैं। शाम होने के बाद से ही फोन बजते हैं और जल्दी घर आने के लिए कहा जाता है। इसे देखकर लगता है कि भारत आजाद है, लेकिन महिलाएं नहीं।” वीवो कंपनी में कार्यरत, शंकर सिंह का कहना है कि इस तरह की घटनाओं के लिए कहीं न कहीं शिक्षा की कमी भी एक कारण है और साथ ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए भरसक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

नई दिल्ली के मिंटो रोड कॉलोनी में रहने वाले राजेश ने कहा, “दुष्कर्म पीड़ितों को मिलने वाले न्याय में देरी से वारदातें बढ़ रही हैं। अगर इन मामलों में तुरंत न्याय मिले, तो कुछ सुधार की उम्मीद की जा सकती है।” पीतमपुरा इलाके में रहने वाली नेहा तोमर का कहना है कि देश में नाबालिगों के लिए बनाए गए कानूनों में सुधार की जरूरत है। इस दिशा में कड़े कानून लागू करने चाहिए। देश में बढ़ते दुष्कर्म के मामलों में कमी लाने के लिए समाज में लोगों की मानसिकता और कानून प्रणाली में बदलाव की जरूरत है, यह सभी ने माना। साथ ही लोग यह भी मानते हैं कि दुष्कर्म पीड़िताओं को सशक्त बनाने के लिए जागरूकता फैलाना भी जरूरी है। लेकिन इस दिशा में कदम बढ़ाएगा कौन यह भी एक सवाल।

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