NationalTop News

समाज को बांटने वाले तत्वों का होना चाहिए खात्मा: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, अधिकारों का सम्मान, अल्पसंख्यकों की संवेदनाओं

कोलकाता| राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को आह्वान किया कि अल्पसंख्यकों की संवेदनाओं और अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए और समाज को बांटने वाले तत्वों का खात्मा किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने यहां एशियाटिक सोसायटी में ‘इंदिरा गांधी स्मृति व्याख्यान 2013’ के दौरान कहा, “हमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों और संवेदनशीलता का सम्मान करना सीखना चाहिए। हमें धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ²ष्टिकोण विकसित करना चाहिए और ऐसी जीवन पद्धति को बढ़ावा देना चाहिए, जो नागरिक कर्तव्यों और अधिकारों के साथ ही व्यक्तिगत जिम्मेदारियों से हस्तक्षेप नहीं करता है।” उन्होंने कहा, “हमें एक ऐसा वातावरण बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए, जहां हर समुदाय खुद को राष्ट्र का हिस्सा महसूस करे।” राष्ट्रपति ने कहा, “हमें अपने सभी नागरिकों में व्यापक मानवीय दृष्टिकोण प्रोत्साहित करने चाहिए और उन्हें शिक्षित करना चाहिए, ताकि वे जाति व संप्रदाय से ऊपर उठ सकें।”

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि हर नागरिक राष्ट्रीय हित की प्राथमिकता को समझे। उन्होंने कहा, “कई बार ऐसा होता है कि क्षेत्रीय हित, राष्ट्रीय हितों से आगे निकल जाते हैं। हमें ऐसी किसी भी प्रवृत्ति से सतर्क रहने और उन्हें पनपने देने से रोकने की आवश्यकता है।” उन्होंने धन और सेवाओं के वितरण में समानता की आवश्यकता पर बल देते हुए नागरिकों से लगातार राष्ट्र की उन्नति के लिए प्रयासरत रहने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “यदि भारत को विकास की चुनौतियों से पार पाना है और दुनिया में अपने लिए एक सम्मानजनक जगह बनानी है तो यह आवश्यक है कि सभी नागरिक उत्पादन बढ़ाने के लिए काम करें।” राष्ट्रपति ने भारतीयों से देश के इतिहास के बारे में जानने का आग्रह किया।

मुखर्जी ने कहा, “हर भारतीय नागरिक को अतीत की अपनी गलतियों और सीमाओं के बारे में पता होना चाहिए, जिसने हम सबके बीच असमानता की समस्या पैदा कर रखी है।” मुखर्जी ने युवाओं में विविधता में एकता की अवधारणा से लड़ने के लिए कहा। उन्होंने कहा, “सभी भारतीयों को उन लोगों के बारे में जानना चाहिए जो विश्व के अलग-अलग हिस्सों से यहां आए हैं और उन्होंने अपना शानदार योगदान दिया हैं, यही भारतीय संस्कृति है।” उन्होंने कहा, “विभिन्न धर्मों और महान संतों के बारे में ज्ञान हर किसी की शिक्षा का अभिन्न अंग होना चाहिए। हर भारतीय को बाहरी दुनिया के साथ हमारे सदियों पुराने संपर्कों और विश्व सभ्यता के लिए हमारे योगदान से परिचित होना चाहिए।”

=>
=>
loading...