लखनऊ। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस-प्रशासन को चुनौती देते हुए 18 नवंबर 2015 को की गई होटलकर्मी नमन वर्मा की हत्या को लेकर क्षत्रिय स्वर्णकार एकता महासभा व एकता विकास व्यापार मंडल के बैनर तले आज लोग फिर सड़कों पर उतरे। जीपीओ पर हुए शांतिपूर्वक धरने के दौरान हत्याकांड को लेकर लोगों में आक्रोश साफ-साफ दिखा।
पुलिस के निष्क्रिय रवैये पर असंतोष व्यक्त करते हुए नमन वर्मा के माता-पिता ने कहा कि लगभग दो महीने बाद भी राजधानी पुलिस के हाथ खाली हैं, आखिर कैसी जांच कर रही है लखनऊ पुलिस जो अभी तक हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला। पिता महेंद्र वर्मा ने कहा कि हमारा बेटा तो चला गया लेकिन उसके हत्यारे यदि कानून के शिकंजे से बाहर खुले में घूमते रहे तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। हम लोगों की जिंदगी का आखिरी मकसद अब नमन के हत्यारों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का है। नमन के परिजनों ने यह भी मांग की कि हमें मुख्यमंत्री से मिलने दिया जाय ताकि उनसे मिलकर हम इस हत्याकांड की उच्चस्तरीय जांच करवाने की गुजारिश कर सकें क्योंकि लगता है राजधानी पुलिस हत्याकांड का पर्दाफाश नहीं कर पाएगी।
राष्ट्रीय स्वर्ण व्यवसाई महासभा के प्रदेश महासचिव विजय प्रकाश रस्तोगी ने कहा कि नमन वर्मा के हत्यारों को यदि जल्द से जल्द गिरफ्तार नहीं किया गया तो एक बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा। वैसे देखा जाय तो समाजवादी पार्टी की सरकार में हमेशा से ही कानून-व्यवस्था लचर रही है लेकिन बहुचर्चित नमन वर्मा हत्याकांड में स्मार्ट व तकनीकी रूप से दक्ष पुलिसिंग की संज्ञा देकर अक्सर खुद अपनी ही पीठ थपथपाने वाली लखनऊ पुलिस अभी भी अंधेरे में ही तीर चला रही है।
गौरतलब है कि स्थानीय होटल रेनेसां में असिसटेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत नमन वर्मा की 18 नवंबर 2015 की रात लगभग दस बजे अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। मीडिया सहित पुलिस प्रशासन व आमजन को हिला देने वाले इस हत्याकांड से लखनऊ वासी हतप्रभ थे क्योंकि नमन वर्मा एक सीधा-सादा नौजवान था जिसकी शराफत के सभी कायल थे। लखनऊ के आम नागरिकों ने इस हत्याकांड से स्वयं जोड़ते हुए नमन वर्मा को इंसाफ दिलाने सड़कों पर भी उतरे लेकिन नतीजा अभी तक सिफर ही रहा।
पुलिस के टालू रवैये की बानगी यह रही कि पहले तो विभूतिखंड पुलिस इसे एक दुर्घटना बताती रही जब पोस्मार्टम की रिपोर्ट में गोली मारने की बात सामने आई तब जाकर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया। उसके बाद भी पुलिस ने मामले में कोई खास प्रगति नहीं की। लखनऊ से दिल्ली और लुधियाना की दौड़ भी बेकार ही रही। कुल मिलाकर लखनऊ पुलिस ने मामले को रफा दफा करने का ही प्रयास किया जबकि प्रशासन के ऊपर आम नागरिकों के अलावा कई व्यापारिक संगठनों व मीडिया का भी दबाव था। सोचने वाली बात यह है कि एक साधारण हत्याकांड को लखनऊ पुलिस के उदासीन रवैये ने मर्डर मिस्ट्री बनाकर रख दिया। अब पुलिस किस नतीजे पर और कब पहुंचती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन नमन के माता-पिता और परिजनों को इंतजार है तो उसके हत्यारों को कानून के शिंकजे में देखने का।