नई दिल्ली। आतंकियों को पीट दिखाकर भागने वाले सेना के जवान की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। मोर्चे पर सेना का गौरवान्वित इतिहास ही काफी नहीं होता बल्कि सैनिक को देश की अखंडता का इतिहास अपने शौर्य से लिखना भी पड़ता है। जबकि सेना के इस जवान ने ऐसा नहीं किया इसलिए इसका बर्खास्त होना ही सही है। घटना 2006 में जम्मू कश्मीर के एक गांव की है जहां आतंकियों ने घात लगाकर हमला करते हुए उसेना के जवान गुरमेल सिंह को मार डाला था। फिर भी उसके साथी जवान ने आतंवादियों पर पलटवार नहीं किया। जबकि उसके पास एके 47 और पिस्टल थी।
जवाबी फायरिंग करने के बजाय ये सिपाही पोस्ट को यूं ही छोड़कर दीवार कूद कर भाग गया था। कोर्ट मार्शल में भी आरोपी जवान को दोषी मानते हुए बर्खास्त करते हुए 6 महीने कैद की सजा भी सुनाई गई है। सिपाही ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने कोर्टमार्शल के फैसले को ही सही माना। कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि मोर्चे पर सेना का गौरवान्वित इतिहास ही काफी नहीं होता बल्कि सैनिक को देश की अखंडता का इतिहास अपने शौर्य से लिखना भी पड़ता है।
कोर्ट ने कहा कि किसी सिपाही या अधिकारी के खिलाफ ऐसे मामलों में उसका पिछला इतिहास और काम भी ध्यान में रखना होता है। हर परिस्थिति को एक ही मानक से नहीं देखा या तय किया जा सकता। सिपाही की ट्रेनिंग ही दुश्मन से मुकाबला करने और उन्हें परास्त कर देश की अखंडता की रक्षा करने की होती है। उस मौके पर पीठ दिखाना कायरता है।