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‘बलिदान बैज’ पाने के लिए होती है ऐसी कठिन ट्रेनिंग, सोचकर ही आपकी चीख निकल जाएगी

नई दिल्ली। हाल ही में टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी मैदान पर बलिदान ग्लव्स पहने हुए नज़र आए थे। उनके इन ग्लव्स की फोटो कुछ ही देर में सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी। कुछ लोगों का कहना था कि धोनी को आने वाले मैचों में भी यही ग्लव्स पहनकर मैदान पर उतरना चाहिए तो कुछ का कहना था कि धोनी को आईसीसी के फैसले का स्वागत करते हुए ये ग्लव्स नहीं पहनने चाहिए।

क्या आप जानते हैं कि बलिदान बैज पाने के लिए कमांडोज़ को शरीर तोड़ देने वाली ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। ऐसी ट्रेनिंग जिसे सोचकर ही कई लोगों के होश उड़ जाते हैं। सेना के सबसे घातक, काबिल, अत्याधुनिक हथियारों के अलावा बिना हथियारों के भी दुश्मनों का खात्मा करने में सक्षम होते हैं पैरा कमांडो। पैरा कमांडो बनने के लिए सभी जवानों को बतौर पैराट्रूपर्स क्वॉलिफाई करना होता है। उसमें सलेक्ट होने के बाद वह स्पेशल फोर्सेज को चुन सकते हैं।

पैरा की ट्रेनिंग दुनिया में सबसे मुश्किल होती है, जिसमें जवान को हर उस दर्दनाक चीज से गुजरना पड़ता है, जिसे सोचकर ही एक आम इंसान की चीख निकल जाए। जवानों को सोने नहीं दिया जाता, भूखा रखा जाता है। मानसिक और शारीरिक तौर पर टॉर्चर किया जाता है। बुरी तरह थके होने के बावजूद ट्रेनिंग चलती रहती है। खाने को न मिले तो आसपास जो उपलब्ध हो, उसी से गुजारा करना पड़ता है। इतनी मुश्किल ट्रेनिंग को कई जवान छोड़ चले भी जाते हैं।

इतनी दर्दनाक ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जवानों को गुलाबी टोपी दी जाती है। लेकिन इसके बाद उन्हें बेहद खास चीज मिलती है। वो होता है बलिदान बैज। लेकिन इसे हासिल करने के लिए भी जवानों को खतरनाक परीक्षा देनी होती है। पैरा कमांडोज को ‘ग्लास ईटर्स’ भी कहा जाता है यानी उन्हें कांच भी खाना पड़ता है। यह एक परंपरा है। टोपी मिलने के बाद उन्हें रम से भरा ग्लास दिया जाता है। इसे पीने के बाद जवानों को दांतों से ग्लास का किनारा काटकर उसे चबाकर अंदर निगलना पड़ता है। इसके बाद जवानों के सीने पर बलिदान बैज लगाया जाता है।

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH