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मुलायम की राजनैतिक विरासत आखिर किसको मिलेगी ?

लखनऊ। भारतीय राजनीति में मन से मुलायम और इरादों से लोहा कहे जाने जाने वाले दिग्गज राजनेता मुलायम सिंह यादव यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार देश के रक्षामंत्री रह चुके हैं। ग्रामीण भारत की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने और पहलवानी का शौक रखने वाले सपा मुखिया रह चुके मुलायम सिंह यादव अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी को पठखनी देकर अपने राजनैतिक गुरु एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनैतिक विरासत हासिल करके पहली बार साल 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बने। अपने सम्पूर्ण राजनैतिक कार्यकाल के दौरान नेताजी जी का विवादों से गहरा नाता रहा है। फिर चाहे वो कारसेवकों का नरसंहार हो या फिर उत्तराखंड आंदोलनकारियों पर हुए गोलीकांड का प्रकरण हो, लेकिन आरोपों से इतर मुलायम सिंह यादव अपने बचाव के लिए मुखर व्यक्तित्व के कारण भारतीय राजनीति के क्षितिज पर लगभग दो दशकों तक छाए रहे।

कभी हार न मानने वाले मुलायम सिंह यादव को अपनी पारिवारिक कलह के चलते हार माननी पड़ी। इस बार उनकी लड़ाई किसी पार्टी या राजनेता से नहीं बाकि अपने बेटे अखिलेश यादव और अनुज भ्राता शिवपाल सिंह यादव के बीच पड़ती उस दरार से थी जिसको पाटने के लिए उन्होंने हर दांव-पेच की आजमाइश की, लेकिन सब बेकार हो गया। इन सबके बीच एक बेहद नाटकीय अंदाज़ में जनवरी 2017 को अखिलेश यादव ने अपने गुट के समर्थकों की बैठक में अपने पिता मुलायम सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष से अपदस्थ कर खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुलायम सिंह यादव को सपा संरक्षक घोषित कर दिया।

इधर शिवपाल सिंह यादव ने भी समर्थक गुट के साथ प्रगतिशील समाजवादी मोर्चा बना लिया और तब से ही मुलायम सिंह दोनों ही गुटों के मंचों पर सार्वजनिक रूप से लगातार दिखते रहे हैं। एक तरफ बेटे को आशीर्वाद तो दूसरी तरफ भाई को तमाम मंचों से समर्थन आखिर मुलायम सिंह के किस दांव-पेंच की रणनीति है ये नेताजी के अलावा किसी को नहीं मालूम है। हां इतना जरूर है कि मुलायम की इस गुगली से सपा समर्थकों का एक बड़ा तबका जरूर भ्रमित हुआ है। मुलायम की राजनैतिक विरासत का ऊंट किस पक्ष में बैठेगा यह आने वाला चुनाव ही तय करेगा।

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Jitendra Gupta
the authorJitendra Gupta