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मप्र के प्रचार अफसरों पर कार्रवाई करने में चुनाव आयोग को संकोच क्यों : कांग्रेस

भोपाल, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संविदा नियुक्ति पाए प्रमुख सचिव के पास जनसंपर्क विभाग का जिम्मा और मुख्यमंत्री के रिश्तेदार की संचालक के पद पर नियुक्ति पर कांग्रेस ने सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन अभी तक इन अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। कांग्रेस ने दोनों अफसरों पर कार्रवाई न होने पर सवाल उठाया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के.के. मिश्रा ने मंगलवार को जारी एक बयान में आरोप लगाया कि सरकार व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ‘व्यक्तिगत ब्रांडिंग’ करने का जिम्मा निभा रहे जनसंपर्क विभाग और माध्यम उपक्रम (जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री हैं) दोनों ही विधानसभा चुनाव की आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए भाजपा के पक्ष में प्रचार-प्रसार में लगे हैं।

मिश्रा का आरोप है कि “मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एस.के. मिश्रा जनसंपर्क विभाग के भी प्रमुख सचिव हैं, जो इन दिनों संविदा नियुक्ति पर हैं। वहीं मुख्यमंत्री के रिश्तेदार आशुतोष प्रताप सिंह जनसंपर्क विभाग के संचालक के पद पर तैनात हैं। इन दोनों अफसरों की नियुक्ति की चुनाव आयोग में कई शिकायतें की गईं, फिर भी कार्रवाई का न होना कई शंकाओं-आशंकाओं को जन्म दे रहा है।”

मिश्रा ने कहा है, “रविवार को भाजपा के समृद्घ मध्यप्रदेश अभियान के शुभारंभ के दौरान प्रचार-प्रसार के लिए पूरे राज्य में निकले प्रचार रथों का जिम्मा जनसंपर्क और माध्यम से पिछले कई वषों से करोड़ों रुपये के ठेके के जरिए उपकृत किए जा रहे दो लोगों को सौंपा गया है। इन रथों में लगी एलईडी टीवी भी वही है, जिनकी कुछ दिनों पहले माध्यम उपक्रम ने बल्क में खरीदी थी। चूंकि माध्यम के ऑडिट की अनिवार्यता नहीं है, लिहाजा वह मनमर्जी से खरीददारी करता रहता है।”

मिश्रा ने आयोग से यह भी आग्रह किया है कि जब भाजपा सांसद भगीरथ प्रसाद की आईपीएस पुत्री सिमाला प्रसाद, भिंड कलेक्टर आशीष कुमार गुप्ता हटाए जा सकते हैं तो भाजपा के लिए नियम विरुद्घ कार्य करने के स्पष्ट प्रमाणों और अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी संविदा नियुक्ति पाकर प्रमुख सचिव, जनसंपर्क का जिम्मा संभाल रहे एस़ क़े मिश्रा व संचालक जनसंपर्क के रूप में कार्य कर रहे मुख्यमंत्री के रिश्तेदार आशुतोष प्रताप सिंह को क्यों नहीं हटाया जा रहा है। इससे आयोग पर सवाल उठना लाजिमी है।

 

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