Health

युवा और बुजुर्ग ही नहीं, भारत में स्कूली बच्चे भी हो रहे डिप्रेशन का शिकार

नई दिल्ली। आजकल की तनाव भरी जिंदगी में डिप्रेशन की रोगियों की संख्या भारत में दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग 10 लाख लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। डिप्रेशन कई बार थोड़े से समय के लिए ही रहता है लेकिन कभी-कभी यही डिप्रेशन एक भयानक रूप ले लेता है। डिप्रेशन की स्थिति तब होती है जब हम जीवन के हर पहलू पर नकारात्मक रूप से सोचने लगते हैं। जब यह स्थिति चरम पर पहुंच जाती है तो इंसान को अपनी ज़िंदगी बेकार लगने लगने लगती है और धीरे धीरे इंसान डिप्रेशन की स्थिति मे पहुंच जाता है। पहले ये बीमारी युवाओं और बुजुर्गों को होती थी लेकिन आजकल बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। इतना ही नहीं बच्चे डिप्रेशन में आत्महत्या जैसा कदम उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं। हाल ही में चंडीगढ़ स्थित स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (PGIMER) के शोधकर्ताओं ने एक शोध किया है। इसके मुताबिक़, भारत में 13 से 18 वर्ष के अधिकतर बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने इस शोध को चंडीगढ़ के 8 सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों पर किया था। इस सर्वेक्षण में 542 किशोर छात्रों को शामिल किया था। डिप्रेशन का मूल्यांकन करने के लिए शोधकर्ताओं ने कई कारकों को अपने अध्ययन में शामिल किया। इस शोध में किशोर के माता-पिता की शिक्षा व व्यवसाय, घर और स्कूल में किशोरों के प्रति रवैया, सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि, यौन व्यवहार और इंटरनेट का यूज़ प्रमुख हैं। इस शोध में शोधकर्ताओं ने पाया है कि लगभग 40 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी रूप में डिप्रेशन के शिकार हैं। इनमें 7.6 प्रतिशत बच्चे गहरे डिप्रेशन के शिकार हैं, जबकि 32.5 प्रतिशत बच्चों में डिप्रेशन संबंधी अन्य समस्‍याएं देखी गई हैं। करीब 30 प्रतिशत बच्चे डिप्रेशन के न्यूनतम स्तर और 15.5 प्रतिशत बच्चे डिप्रेशन के मध्यम स्तर से प्रभावित हैं। इनके अलावा 3.7 प्रतिशत बच्चों में डिप्रेशन का स्तर गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है। वहीं 1.1 प्रतिशत बच्चे अत्यधिक गंभीर डिप्रेशन के शिकार हैं।

डिप्रेशन के मामले में शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों में डिप्रेशन के ज्यादातर कारक परिवर्तनीय हैं और उन पर ध्‍यान देकर उन्‍हें सुधारा जा सकता है। घर और स्कूल के वातावरण को अनुकूल बनाकर छात्रों में डिप्रेशन को कम करने में मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों को लेकर डिप्रेशन पर अभी और शोध करने कि आवश्यकता हैं। रिसर्च टीम के प्रमुख डॉ मनमोहन सिंह का कहना हैं कि ‘किशोरों में डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस समस्या को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि किशोरावस्था बचपन से वयस्कता के बीच के एक संक्रमण काल की अवधि होती है। इस दौरान किशोरों में कई हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन होते हैं। ऐसे में डिप्रेशन का शिकार होना उन बच्चों के करियर निर्माण और भविष्य के लिहाज से घातक साबित हो सकता है।’

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH