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सोमनाथ के परिवार ने माकपा के आग्रह को ठुकराया

कोलकाता, 13 अगस्त (आईएएनएस)| लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के परिवार ने सोमवार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) नेतृत्व द्वारा उनके पार्थिव शरीर को लाल झंडे से लपेटने की मांग और उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए पार्टी के पश्चिम बंगाल मुख्यालय ले जाने की अनुमति देने के आग्रह को ठुकरा दिया।

चटर्जी की बेटी अनुशिला बसु ने कहा, पार्टी ने हमसे आग्रह किया था कि वे लोग पार्टी कार्यकर्ताओं के अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को पार्टी मुख्यालय ले जाना चाहते हैं। लेकिन हमने कहा कि हम ऐसा नहीं चाहते हैं। पार्टी ने हमसे आग्रह किया कि वे उनके पार्थिव शरीर को लाल झंडे से लपेटना चाहते हैं, हमने इंकार कर दिया।

चटर्जी को पार्टी ने 23 जुलाई, 2008 को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। पार्टी ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के विरोध में संप्रग-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था और चटर्जी को भी लोकसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए कहा था, जिसे चटर्जी ने नकार दिया था, और उसके बाद पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था।

चटर्जी 10 बार लोकसभा के सदस्य रहे, जिसमें वह माकपा उम्मीदवार के तौर पर नौ बार और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पार्टी के समर्थन से एक बार सांसद बने थे।

उनका सोमवार को 89 वर्ष की अवस्था में कोलकाता के एक नर्सिग होम में निधन हो गया।

अनुशिला ने कहा कि जिस दिन उनके पिता को पार्टी से निष्कासित किया गया था, उन्होंने उनकी आंखों में आंसू देखे थे। उन्हें वह दिन अच्छी तरह याद है, जब माकपा पोलित ब्यूरो ने यह निर्णय लिया था।

उन्होंने कहा, मैं तभी दिल्ली में थी। मैंने अपने पिता को कहा था कि अब आप एक आजाद पक्षी हैं। कुछ देर बाद, मैं उन्हें देखने उनके चैंबर गई। मैंने उन्हें उनके चैंबर में बैठे देखा, उनकी आंखों में आंसू थे।

अनुशिला ने कहा कि न तो चटर्जी इस निर्णय को स्वीकार कर पाए थे, और न परिवार के किसी सदस्य ने ही।

हालांकि उन्होंने कहा कि चटर्जी पार्टी से बहुत प्यार करते थे।

उन्होंने कहा, हम कभी-कभी पार्टी के विरुद्ध बयान देने के लिए उन्हें भड़काते थे। लेकिन उन्होंने पार्टी के विरुद्ध कभी कोई शब्द नहीं कहा। वह पार्टी से बहुत प्यार करते थे।

उन्होंने कहा, पार्टी के साथ उनका अलगाव केवल कागज और कलम में हुआ था। लेकिन मानसिक तौर पर, वह पार्टी से अलग नहीं हुए थे।

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