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अपने हौसलों से किया यूपीएससी टॉप, जानिए एक ‘माँ’ की सफलता की कहानी

आपने फ़िल्म राँझना का वो डायलॉग जरूर सुना होगा कि प्यार न हो गया यूपीएससी का एग्जाम हो गया साला क्लियर ही नहीं होता। दरअसल कठिनतम माने जाने वाली यूपीएससी की परीक्षा पास करना कोई मामूली बात नहीं है। इस साल के यूपीएससी में सेकंड रैंक हासिल करने वाली टॉपर एक चार साल के बेटे की मां है। घर और बच्चे की जिम्मेदारियों को निभाते हुए यूपीएससी पास करने वाली अनु कुमारी की यह स्टोरी काफी दिलचस्प है।MBA करने के बाद सिविल सर्विसेस में सेकंड पोजीशन पाने वाली अनु कुमारी की सक्सेस स्टोरी बेहद इंस्पायरिंग है। अनु ने 20 लाख रुपए सालाना पैकेज की प्राइवेट जॉब छोड़कर यूपीएससी की तैयारी करने का रिस्क उठाया था। गोद में चार साल का बच्चा होने के बावजूद उन्होंने न सिर्फ यूपीएससी की परीक्षा पास की बल्कि टॉप भी किया।

अनु कुमारी हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली हैं। अनु के पति वरुण दहिया बिजनेसमैन हैं। और उनका 4 साल का बेटा विहान है।

हाल में एक इंटरव्यू में अनु ने बताया, मेरे पिता स्थानीय हॉस्पिटल के HR डिपार्टमेंट में थे। हम चार भाई-बहन हैं, जिनमें मैं दूसरे नंबर पर हूं। इंटरमीडिएट के बाद मैंने दिल्ली के हिंदू कॉलेज में एडमिशन लिया था। मैं डेली सोनीपत से दिल्ली ट्रेन के जरिए अप-डाउन करती थी।पहली बार अनु घर से दूर MBA में एडमिशन के बाद गई थीं। उन्हें नागपुर के कॉलेज में एडमिशन मिला था। शुरुआत में मुझे घर की याद आती थी, फिर पढ़ाई और दोस्तों ने मुझे नई लाइफ में सेटल कर दिया।

अनु बताती हैं, पीजी के बाद मेरी पहली जॉब में लगी थी। फिर मैंने 20 लाख रुपए सालाना के पैकेज पर अवीवा लाइफ इंश्यॉरेंस कंपनी ज्वाइन की। 2016 में मामा ने मेरे भाई के साथ मिलकर चोरी छुपे मेरा फॉर्म भरवा दिया था।

यह बात जानकर मैंने अपनी पूरी एनर्जी UPSC में लगाने की ठान ली। इसके लिए मैंने अपनी जॉब भी छोड़ दी थी। फर्स्ट अटैम्प्ट में सिर्फ एक मार्क की वजह से पिछड़ना मुझे खल रहा था। मैंने ठान लिया कि इस बार तो करके ही दिखाना है। मेरा बेटा तब कुल तीन साल का था।सिविल सर्विसेस में आने के लिए मुझे उससे पूरे दो साल तक दूर रहना पड़ा। मैंने उसे अपनी मां के पास छोड़ा और पूरी तरह प्रिपरेशन में जुट गई। इसमें मेरे हसबैंड ने मेरा पूरा साथ दिया।

बेटे से दूर होना मुझे सबसे बुरा लगता था। छोटी सी मुलाकात के बाद जब हम अलग होते थे तो वह बहुत रोता था। उससे ज्यादा मैं रोती थी, लेकिन यह त्याग जरूरी था।

 

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