LifestyleOther NewsUttar Pradesh

यह माँ बनी लोगों के लिए एक मिसाल, ये काम करके बनाया बेटी को डॉक्टर

जब इस गरीब की बेटी बनी डाॅक्टर तब सच हुआ इस माँ का सपना और उसकी मेहनत, बेटी को डॉक्टर बना देख ख़ुशी के मारे निकले माँ के आँखों से आँसू। माँ बाप अपने बच्चो के लिए क्या- क्या नहीं करते हैं। जब बच्चा पेट में होता हैं तभी से माँ बाप अपने बच्चे के सपने देखने लगते हैं। और उनको पूरा करने के लिए हर तरह के प्रयत्न भी करते हैं। जब एक पिता को पारिवारिक दायित्वों से समझौता करना पड़ता है तब एक मां अपनी असली भूमिका में आती है। पति की जरूरतों से लेकर बच्चों की परवरिश के लिए की हर एक छोटी-बड़ी कोशिशों और कुर्बानियों करती है और जब पत्नी सर से पति का साया छिन जाता हैं तब एक औरत की जिम्मेदारियां और मुश्किलें और भी बढ जाती हैं। किसी ने सच कहा हैं पिता माँ नहीं बन सकता लेकिन माँ पिता बन सकती हैं लोग सिर्फ मदर्स डे पर माँ को याद करते है लेकिन क्या मां को याद करने के लिए सिर्फ एक ही दिन पर्याप्त हैं?

मां की ममता तो असीमित है, तो उनके लिए हमारा आदर क्यों सिर्फ एक ही दिन के लिए सीमित रहे। हम चाहे तो हर दिन को अपनी मां ले लिए महत्वपूर्ण बना सकते हैं, वह तो हमारे जीवन की हर राह पर साथ है।

जब सपना हुआ सच तो बहुत रोई यह सुमित्रा माँ

हम आपको मां की सफलता की एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने सब्जी की दुकान लगाकर, घरों में झाड़ू-पोंछा और स्टैंड पर पानी बेचकर अपनी बेटी को डॉक्टर बना दिया। सफलता की ये कहानी यूपी के हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे की रहने वाली सुमित्रा और उनकी बेटी अनीता की है।

सुमित्रा बताती हैं कि ‘दो बेटे व तीन बेटियां सहित उसके पांच बच्चे हैं। करीब 14 साल पहले मजदूरी करने वाले पति संतोष की मौत हो गई। बच्चों की जिम्मेदारी उन पर आ गई. सबसे बड़ी बेटी अनीता डॉक्टर बनना चाहती थी। वह बताती हैं कि ‘मैं पढ़ी लिखी नहीं हूं, लेकिन बेटी को आगे पढ़ाने का निर्णय लिया। अनीता 10वीं में 71 व 12 वीं में 75 प्रतिशत अंकों के साथ पास हुई। अनीता ने स्कूल में टॉप किया। 2013 में कानपुर में एक साल की तैयारी के बाद सीपीएमटी में अनीता का चयन हो गया। अनीता को 682 रैंक मिली। उसे इटावा के सैफई मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। एमबीबीएस की पढ़ाई करते हुए उसका पांचवा आखिरी साल है। वह बताती है कि जब उसका चयन हुआ तब उसकी मां और वह बहुत रोई।


सलाम हैं इस माँ और बेटी को

सुमित्रा ने घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने का काम किया। बस स्टैंड पर पानी बेचा। अधिक रुपयों के लिए उन्होंने सब्जी की दुकान लगाना शुरू किया। इससे वह 300 से 500 रुपये वह हर रोज कमाने लगी। भाई ने भी बहन को पढ़ाने के लिए सब्जी का ठेला लगाया। सुमित्रा कहती हैं कि एक-एक पाई जोड़ अनीता को रुपए भेजे। अनीता बताती हैं कि हाईस्कूल की पढ़ाई के बीच रुपयों के लिए स्कूल के बाहर इमली और कैथा तक बेचा।

अनीता करेगी गरीबों का मुफ्त इलाज

अनीता ने कहा मेरे मां ने मुझे डॉक्टर बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। अनीता के बताया मेरे पिता की मौत भी बीमारी की वजह से हुई थी और उस वक्त इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। मैंने बहुत गरीबी देखी है इसलिए भविष्य में उन लोगों के लिए मुफ्त इलाज करूंगी जो गरीब होने की वजह से अस्पताल नहीं पहूंच पाते।

सुमित्रा ने बताया कि उसकी छोटी बेटी विनीता भी डाक्टर बनना चाहती है। उसे सीपीएमटी की तैयारी करने के लिये कानपुर भेज दिया गया है। सुमित्रा को भरोसा है कि छोटी बेटी भी बड़ी की तरह नाम रोशन करेगी।

=>
=>
loading...