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कांग्रेस ‘अकलियतपरस्ती’ से उबरने की कोशिश में

भोपाल, 7 सितंबर (आईएएनएस)| कांग्रेस अपने ऊपर लगी ‘अकलियतपरस्ती’ (अल्पसंख्यकों की पक्षधर) की तोहमत से बेचैन है। पार्टी को लगने लगा है कि अब यह बताने का वक्त आ गया है कि इस तोहमत को धोया जाए। यही कारण है कि कांग्रेस को बार-बार सफाई देनी पड़ रही है। वह लगातार कह रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उसे अकलियतपरस्त बताने के लिए लगातार दुष्प्रचार कर रही है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कई मंदिरों में दर्शन के बाद, मानसरोवर की यात्रा पर निकल पड़े हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार द्वारा स्थापित किए गए 50 से ज्यादा मंदिरों का ब्यौरा दिए जा रहे हैं। कांग्रेस की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ को यह बताना पड़ रहा है कि उन्होंने छिंदवाड़ा में देश का सबसे बड़ा हनुमान मंदिर बनवाया है।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पहचान सबसे बड़े अल्पसंख्यक समर्थक नेता के तौर पर बन चुकी है। यही कारण है कि उन्हें नर्मदा नदी की परिक्रमा यात्रा करनी पड़ी। इतना ही नहीं, वे लगातार यही बता रहे हैं कि उन जैसे कर्मकांडी कम ही हैं।

सवरेदयी चिंतक संतोष द्विवेदी कहते हैं कि कांग्रेस वर्तमान समय में पहचान के संकट के दौर से गुजर रही है, इसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। एक ऐसी पार्टी जिसके साथ ऐतिहासिक विरासत है, जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसा नेता हुआ, कांग्रेस उस विरासत को नई पीढ़ी तक नहीं पहुंचा पा रही है।

उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को अपनी विचारधारा और अपने कार्यो से अवगत कराने में विफल रहने की वजह से अब कांग्रेस को यह सब करना पड़ रहा है। वह अब बताने में जुटी है कि वह क्या है।

मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में आदिवासियों के बीच पहुंचे सिंधिया ने गुरुवार और शुक्रवार को अपनी जनसभाओं में भाजपा पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा, भाजपा राम मंदिर के निर्माण की बात करती है, मगर उसने राम का मंदिर तो नहीं बनाया, मगर बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे का मंदिर जरूर बनवा दिया।

सिंघिया राजघराने ने 50 से ज्यादा मंदिर बनवाए हैं, मगर उसे प्रचारित कभी नहीं किया।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का कहना है कि कांग्रेस को भाजपा ने राजनीतिक रणनीति के तहत अल्पसंख्यक-परस्त प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह बात सही है कि कांग्रेस पर यह आरोप चस्पा भी हो चुका है। यही कारण है कि दिल्ली से लेकर गांव-गांव तक कांग्रेस को अपनी सफाई देनी पड़ रही है और नेता अपने को धार्मिक बताने के लिए कई तरह के बयान दे रहे हैं।

मध्यप्रदेश में अगले तीन माह के भीतर विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। इस चुनाव में किसी भी दल के पक्ष और विरोध में माहौल नहीं है, यही कारण है कि भाजपा अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने के साथ कांग्रेस की कारगुजारियों पर हमले बोल रही है।

वहीं, कांग्रेस लगातार भाजपा पर समाज में विष घोलने का आरोप लगाने के साथ उसकी नीतियों की आलोचना कर रही है और अपने को यह बताने में लगी है कि वह किसी एक वर्ग की परस्त नहीं है। मतदाताओं पर किसके दावों का कितना असर होगा, यह तो आने वाले समय में ही पता चल सकेगा।

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