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हमें गहराई से पोषित और विकसित करता है सेक्स

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जानिए सेक्स को लेकर क्‍या कहता है आयुर्वेद

हम लोग इस पारंपरिक बात पर यकीन करते हैं कि सेक्स सिर्फ बच्चे पैदा करने के उद्देश्य से किया जाता है जबकि आयुर्वेद, सेक्स को सिर्फ प्रजनन तक सीमित नहीं रखता। आयुर्वेद के मुताबिक, सेक्स हमें गहराई से पोषित और विकसित करता है लिहाजा समय-समय पर इसका उपभोग करना चाहिए। हालांकि इसके कुछ नियम भी हैं।

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आयुर्वेद इस बात पर यकीन करता है कि हमारा शरीर सात अत्यावश्यक और मौलिक धातुओं से मिलकर बना है। इनमें से एक है रस धातु। रस जिसे सार या सिरम कहते हैं वह रक्त का सफेद वाला हिस्सा होता है।

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इस रस के साथ आता है सेक्‍सुअल तरल पदार्थ जिसे सुक्र धातु कहते हैं और इसके बनने की प्रक्रिया में करीब एक महीने का समय लगता है। सुक्र धातु, रस का बेहद संशोधित रूप है। लिहाजा सेक्‍सुअल फ्लूड बनाने में शरीर को काफी मेहनत करनी पड़ती है।

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इन फ्लूड्स से रस का और ज्यादा गाढ़ा रूप निकलता है जिसे ओजस कहते हैं। ओजस, नए जीवन का आधार है और नई रचना करने में सक्षम है।

हमारी सेक्‍सुअल एनर्जी को प्रभावित करने वाला एक और कारक एक फोर्स है जिसे अपान वायु कहते हैं। हमारा शरीर जिन पांच तरह की हवाओं बना है उसी में से एक है अपान वायु जो शरीर के निचले हिस्से में रहती है।

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अपान वायु एक ऐसा फैक्टर है जो मासिक धर्म, प्रजनन और ऑर्गज्म को नियंत्रित करता है। अगर इस वायु की गति स्वस्थ है तो यह हमारी जड़ों को बरकरार रखने में मदद करता है।

भले ही इंटरनेट पर इन दिनों ऑर्गज्म के फायदों के बारे में बढ़ चढ़कर बताया जा रहा हो लेकिन आयुर्वेद की मानें तो कुछ परिस्थितियों में ऑर्गज्म हमारे शरीर के लिए हानिकारक होता है।

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ऐसा इसलिए क्योंकि सेक्स के बाद हमारे शरीर में वात दोष उत्पन्न होता है जिससे हमारा शरीर कमजोर होता है। वात दोष सुक्र धातु को नुकसान पहुंचाता है जिसे शरीर में बनने में एक महीने से भी ज्यादा का वक्त लगता है। इस वजह से ओजस का उत्पादन कम हो जाता है जो हमें एनर्जी देने का काम करता है।

अधिकतर लोग रात के समय सेक्स करना पसंद करते हैं जबकि आयुर्वेद के अनुसार यह सेक्स करने का अनुकूल समय नहीं है। आयुर्वेद की मानें तो सेक्स करने का सबसे अच्‍छा समय सुबह के समय सूर्योदय के बाद लेकिन 10 बजे से पहले या फिर शाम के वक्त है।

इसके अलावा ठंड का मौसम और वसंत ऋतु सेक्स के लिए सबसे अनुकूल है। गर्मी के मौसम में वात दोष में वृद्धि होती है। लिहाजा इस दौरान व्यक्ति को सेक्स और ऑर्गज्म की फ्रीक्वेंसी को कम कर देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्मी के मौसम में हीट की वजह से हमारे शरीर की एनर्जी पहले ही कम रहती है।

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जिन लोगों की सेहत अच्छी है उन्हें वसंत ऋतु और ठंड के मौसम में एक सप्ताह में 3 से 5 बार सेक्स करना चाहिए। अगर वे लोग ऐसा नहीं करते तो उनके शरीर में बनने वाला ओजस बर्बाद हो जाता है। वहीं गर्मी के मौसम में 1 या 2 हफ्ते में एक बार से ज्यादा सेक्स नहीं करना चाहिए।

आयुर्वेद में सेक्स से जुड़े कई और टिप्स भी बताए गए हैं

– प्राकृतिक रूप से ऐसे भोजन का सेवन करें जिससे आपकी कामोत्तेजना बढ़े और शरीर में सुक्र धातु का निर्माण प्रोत्साहित हो। ऐसी चीजों में घी, नारियल पानी या नारियल का जूस और दूध शामिल है।

– नहाने से पहले तेल से अपने शरीर का मसाज करें।

– सेक्स के बाद नहाना न भूलें और साफ और आरामदायक कपड़े पहनें।

 

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