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बुजुर्ग कांग्रेसी नेता एनडी तिवारी बेटे सहित भाजपा में शामिल

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव, नारायण दत्त तिवारी, बेटे रोहित तिवारी, भाजपा में शामिलnd tiwari with son
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव, नारायण दत्त तिवारी, बेटे रोहित तिवारी, भाजपा में शामिल
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देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने कांग्रेस को एक और झटका दे दिया। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी अपने बेटे रोहित तिवारी के साथ भाजपा में शामिल हो गए। इसके लिए वह दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के घर पहुंचे। अभी दो दिन पहले ही एक और वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव ने भी भाजपा ज्वाइन की थी।

व्यक्तिगत जीवन

नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। नारायण दत्त तिवारी की शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई।

तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टाप किया था। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की।

सियासी जीवन

1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हुआ। 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी।

आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया। कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए।

1954 में एनडी तिवारी का विवाह सुशीला सनवाल से हुआ। वर्ष 1993 में उनके पत्नी का निधन हो गया। वर्ष 2014 में एनडी ने उज्ज्वला शर्मा से किया।

कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली।

1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था। 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था।

1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा।

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