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प्रेम मंदिर के पांचवें वार्षिकोत्सव में उमड़ा आस्था व प्रेम का सागर

प्रेम मंदिर का पांचवां वार्षिकोत्स व, श्रीकृष्ण और श्रीराधा जी का अभिषेक, श्रीकृष्ण् और श्रीराधारानी के भव्यं मूर्तिरूप का दर्शनप्रेम मंदिर

वृंदावन (मथुरा, उत्‍तरप्रदेश)। वृंदावन स्थित प्रेम मंदिर का पांचवा वार्षिकोत्‍सव पूरे हर्षोल्‍लास के साथ श्रद्धापूर्वक मनाया गया। वार्षिकोत्‍सव के भव्‍य कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः दस बजे श्रीकृष्‍ण और श्रीराधा जी के अभिषेक के साथ हुआ। तत्‍पश्‍चात 11 बजे श्रीकृष्‍ण और श्रीराधारानी के भव्‍य मूर्तिरूप का दर्शन मात्र पाकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।

प्रेम मंदिर का पांचवां वार्षिकोत्स व, श्रीकृष्ण  और श्रीराधा जी का अभिषेक, श्रीकृष्ण् और श्रीराधारानी के भव्यं मूर्तिरूप का दर्शन
प्रेम मंदिर

आनंद के अतिरेक से भावविह्वल होकर श्रद्धालुओं की आंखों से प्रेम व भक्ति की अश्रुधारा बह निकली। इसके बाद भोग कार्यक्रम में श्रीकृष्‍ण और श्रीराधा के चरणों का अमृत प्रसाद स्‍वरूप पाकर श्रद्धालु खुशी से झूमने लगे। इसके पश्‍चात हुए आरती व भजन के कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की भक्तिभावना देखते ही बनती थी। पूरे कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुजन राधा नाम संकीर्तन करते रहे।

प्रेम मंदिर का पांचवां वार्षिकोत्‍सवः प्रेम व भक्ति से सराबोर रहे श्रद्धालु

बताते चलें कि प्रेम मंदिर भारत में उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के समीप वृंदावन में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया गया है।

प्रेम मन्दिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय और लगभग 150 करोड़ रुपए की धनराशि लगी है। इसमें इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है और इसे राजस्थान और उत्तरप्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया है। इस मन्दिर का शिलान्यास 14 जनवरी 2001 को श्रीकृपालुजी महाराज द्वारा किया गया था।

इसका नजारा इतना अद्भुत है कि इसे देखकर कोई भी राधे-राधे कहे बिना नहीं रह सकता। इसकी अलौकिक छटा भक्तों का मन मोह लेती है। इसमें भक्त वैसे ही खिंचे चले आते हैं, जैसे कृष्ण अपनी लीलाओं से सबका मन मोह लिया करते थे। यहां की दीवारों पर हर तरफ राधा-कृष्ण की रासलीला वर्णित है। यह मन्दिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है।

जगद्गुरू कृपालु परिषत् की अध्‍यक्षा डा. विशाखा त्रिपाठी ने बताया कि वृंदावन में 54 एकड़ में बना यह प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लंबा और 115 फुट चौड़ा है। मंदिर परिसर में एक विशाल हाल बना हुआ है जिसमें एक साथ 25000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।

मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर मार्ग के दोनों ओर बगीचे बने है जिसमें तरह-2 के फूल लगे है। बाईं ओर के बगीचे को पार करके वापिस आने का मार्ग है और उस से परे भगवान श्रीकृष्ण की कालिया नाग के फन पर नाचते हुए लीला दिखाई गई है। फव्वारे, श्रीकृष्ण और राधा की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारणलीला, कालिया नाग दमनलीला, झूलन लीलाएं बेहतर तरीके से दिखाई गई हैं।

डा. विशाखा त्रिपाठी ने आगे बताया कि पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तंभ हैं। इसमें किंकिरी और मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के अंदर और बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का नमूना दिखाते हुए नक्काशी की गई है। यहां संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर ‘राधा गोविंद गीत’ के सरल दोहे लिखे गए हैं। इन्हें भक्त आसानी से पढ़ और समझ सकते हैं।

जगद्गुरू कृपालु परिषत् के सचिव रामपुरी ने बताया कि इस प्रेममंदिर को बनाने की घोषणा जगद्गुरु श्रीकृपालुजी महाराज ने वर्ष 2001 में की थी। इसके 11 साल बाद करीब 1000 मजदूरों ने अपनी कला का बेजोड़ नमूना पेश करते हुए 2012 में इसे तैयार कर दिया था।

प्रेम मंदिर में श्रीकृष्ण और राधारानी की भव्य मूर्तियां है। बाहर से देखने में यह जितना भव्य लगता है, उतना ही अंदर से भी देखने में लगता है। यह मंदिर सफेद इटालियन संगमरमर से बनाया गया है। इसमें प्राचीन भारतीय शिल्पकला की झलक भी देखी जा सकती है।

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