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‘नांगियार कूथू’ ने दिल्लीवासियों का मन मोहा

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नई दिल्ली| उस्ताद शुजात अली खान द्वारा उच्च स्वर में सितार वादन और उसके बाद केरल के प्राचीन संस्कृत एकल नृत्य-नाटक ‘नांगियार कूथू’ के उदात्त गायन ने दिल्ली की कंपकंपाती सर्दी में कला की गर्मी का अहसास करा दिया। आधुनिक भारतीय चित्रकार सैयद हैदर रजा की स्मृति में आयोजित दो दिवसीय उत्सव के पहले दिन मंगलवार को यह भावमय प्रस्तुति रजा फाउंडेशन द्वारा आयोजित शास्त्रीय संगीत और नृत्य महोत्सव ‘महिमा-द रिटर्न ऑफ गुरु’ के उद्घाटन के अवसर पर पेश की गई।

रजा का पिछले साल निधन हो गया था। यह समारोह संगीत और नृत्य के शास्त्रीय प्रदर्शन परंपराओं में शिक्षक या गुरु की प्रासंगिकता पर केंद्रित है।

महोत्सव की शुरुआत इमदादखानी घराने से उस्ताद शुजात खान के गायन से हुई। इस अवसर पर तबला वादक अमजद खान और अरुंगांगशु चौधरी ने एक क्लासिक राग ‘राग पंचम’ का प्रदर्शन किया। इसके बारे में उन्होंने कहा कि आजकल बहुत कम संगीतकारों के द्वारा इसका प्रदर्शन किया जा रहा है।

संध्या की शुरुआत करते हुए, उस्ताद शुजात खान ने करीब आधे घंटे तक एकल गायन किया और उसके बाद तबला वादक अमजद खान और फिर अरुं गांगशु के द्वारा संगत करने के बाद धीरे-धीरे माहौल और अधिक आनंदमय हो गया। बाद में एक आनंददायक ताल ने इस आनंद को चरम पर पहुंचा दिया। इसके खत्म होते ही दर्शकों ने लगातार तालियां बजाकर और खड़े होकर उनका जोरदार स्वागत किया।

2004 में ग्रैमी अवार्ड के लिए नामित सितार वादक ने संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया भर में सितार वादन किया है और उन्हें 100 से अधिक म्यूजिक एलबम में शामिल किया गया है।

कपिला वेणु द्वारा नांगियार कूथू का प्रदर्शन किया गया। ठेठ अलंकृत परिधान पहन, कपिला ‘सौन्दर्य लहरी’ (सौंदर्य के तरंगों) को प्रदर्शित करने के लिए मंच पर आईं। प्रसिद्ध संस्कृत साहित्यिक कृति की इस पहली कविता के बारे में माना जाता है इसे आध्यात्मिक भारतीय दार्शनिक आदि शंकर ने लिखा था।

नांगियार कूथू कूडियाट्टम का महिला प्रतिरूप है, जिसे यूनेस्को के द्वारा एक अमूर्त विरासत के रूप में वर्णित किया गया है।

कपिला ने कहा, “इस प्रदर्शन को मेरे पिता ने करीब 10 साल पहले कोरियोग्राफ किया था।”

इस दो दिवसीय महोत्सव के बारे में रजा फाउंडेशन के कार्यकारी ट्रस्टी अशोक वाजपेयी ने कहा, “इस पर ध्यान देने की बात है कि गुरु की भूमिका को अब कमतर आंका जा रहा है। लोग अभी भी केवल मुंह से बोल देते हैं, करते कुछ नहीं हैं। रजा साहब का अपने स्कूल और कला शिक्षकों से गहरा संबंध था। उन्होंने पेरिस और दिल्ली दोनों जगह अपने स्टूडियो में उनकी तस्वीरों को रखा। उन्होंने सिर्फ बर्कले (अमेरिका) में संक्षिप्त रूप से पढ़ाया, इसे छोड़कर कभी नहीं पढ़ाया। लेकिन, कई उन्हें अपने गुरु के रूप में मानते हैं।”

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Dileep Kumar
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