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उप्र : उमा शंकर की विधानसभा सदस्यता खत्म करने का आदेश

uma shankar

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया के रसड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक उमा शंकर सिंह की सदस्यता समाप्ति का आदेश दिया है। भारत निर्वाचन आयोग से उमा शंकर सिंह की राज्य विधानसभा की सदस्यता के संबंध में 10 जनवरी को प्राप्त अभिमत के आधार पर राज्यपाल ने ‘भारत के संविधान’ के अनुच्छेद 192(1) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उमा शंकर सिंह का विधायक निर्वाचित होने की तिथि छह मार्च, 2012 से विधानसभा की सदस्यता समाप्ति का निर्णय पारित किया है।

दरअसल, मार्च 2012 में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा का सामान्य निर्वाचन में चुने गए विधायकों को छह मार्च, 2012 को निर्वाचित घोषित किया गया था। लेकिन 18 दिसंबर, 2013 को सुभाष चंद्र सिंह, एडवोकेट ने शपथपत्र देकर उमा शंकर सिंह के विरुद्ध उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त अधिनियम, 1975 के अंतर्गत शिकायत करते हुए आरोप लगाया था कि विधायक निर्वाचित होने के बाद भी वह सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण का कार्य करते आ रहे थे।

उस वक्त तत्कालीन लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन.के. मेहरोत्रा ने प्राप्त शिकायत की जांच में सरकारी कंट्रैक्ट लेने के आरोप में विधायक उमा शंकर सिंह को दोषी पाते हुए 18 फरवरी, 2014 को अपनी जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजी थी, जिस पर मुख्यमंत्री द्वारा 19 मार्च, 2014 को भारत का संविधान के अनुच्छेद 191(1)डी सपठित धारा 9ए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत प्रकरण भारत निर्वाचन आयोग के परामर्श के लिए राज्यपाल को संदर्भित किया गया।

तत्कालीन राज्यपाल ने प्रकरण भारत निर्वाचन आयोग, नई दिल्ली के अभिमत के लिए तीन अपै्रल, 2014 को संदर्भित कर दिया। भारत निर्वाचन आयोग से तीन जनवरी, 2015 को अभिमत प्राप्त होने पर उमा शंकर सिंह ने राज्यपाल नाईक के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए समय दिए जाने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार करते हुए राज्यपाल ने 16 जनवरी, 2015 को उनका पक्ष सुना।

पक्षों को सुनने के बाद राज्यपाल ने आरोपों को सही पाते हुए 29 जनवरी, 2015 को सिंह को विधायक निर्वाचित होने की तिथि छह मार्च, 2012 से विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया था। राज्यपाल के निर्णय के विरुद्ध अयोग्य घोषित विधायक उमा शंकर सिंह ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में वाद दायर किया था, जिस पर 28 मई, 2015 को निर्णय देते हुए न्यायालय ने कहा था कि चुनाव आयोग प्रकरण में स्वयं शीघ्रता से जांच कर निर्णय से राज्यपाल को अवगत कराए और उसके बाद राज्यपाल इस मामले में अपना निर्णय लें।

उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में भारत निर्वाचन आयोग ने विधायक उमा शंकर की प्रकरण में जांच की एवं सुनवाई का अवसर प्रदान किया। भारत निर्वाचन आयोग में निर्णय में देरी होने के कारण राज्यपाल ने नौ अगस्त, 2016 को विधायक के सदस्यता के संबंध में चुनाव आयोग को पत्र भेजा, जिसके जवाब में चुनाव आयोग ने एक सितंबर, 2016 को पत्र द्वारा अवगत कराया था कि प्रकरण की जांच पूर्ण होने पर आयोग द्वारा शीघ्र उन्हें अभिमत से अवगत कराया जाएगा।

राज्यपाल ने 16 सितंबर, 2016 को इस संबंध में मुख्य चुनाव आयुक्त से दूरभाष पर वार्ता भी की थी, जिस पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने प्रकरण पर शीघ्र निर्णय लेने की बात कही थी। तत्पश्चात राज्यपाल ने सात जनवरी 2016, 23 मई 2016, पांच नवंबर 2016 एवं 14 दिसंबर 2016 को स्मरण पत्र भी भेजे थे।

राज्यपाल ने अपने आदेश की प्रति भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली, माता प्रसाद पांडेय विधानसभा अध्यक्ष उत्तर प्रदेश, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा उमा शंकर सिंह को भी भेजा है। इसके साथ ही उन्होंने मुख्य सचिव राहुल भटनागर को आदेश की प्रति भेजी है, ताकि आदेश को राजकीय गजट में अविलंब प्रकाशित कराया जाए तथा प्रकाशित गजट अधिसूचना की सात प्रतियां राज्यपाल सचिवालय को भेजी जाए।

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Dileep Kumar
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