ठाणे। आठ नवंबर को हुई नोटबंदी से सबसे बुरा असर कथित रूप से गांवों पर पड़ा है, लेकिन महाराष्ट्र का एक गांव इसका अपवाद है। महाराष्ट्र के ठाणे जिले के मुरबद तालुका स्थित धसई गांव पर नोटबंदी का कोई खास असर नहीं पड़ा है, क्योंकि यह गांव तेजी से कैशलेस सोसायटी बनने की तरफ बढ़ रहा है।
गांव में ‘प्लास्टिक मनी’ कैंपेन चलाया जा रहा है। अगर इस कैंपेन को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी मिली तो धसई गांव देश का पहला कैशलेस गांव बन जाएगा। गांव में इस कैंपेन की शुरुआत स्वातंत्रयवीर सावरकर राष्ट्रीय प्रतिष्ठान नाम के सामाजिक संस्थान ने की है।
धसई गांव आबादी करीब 10 हजार है। गांव में करीब 150 व्यापारी हैं जो दूध, चावल, अनाज और अन्य चीजों का व्यापार करते हैं। गांव के इन व्यापारियों के एक दिन का टर्नओवर कुल मिलाकर करीब 10 लाख रुपये है। गांव में खरीद-बिक्री के लिए धसई के लोगों के अलावा आस-पास के गांव तोकावाडे, आनंदवडी, पालु, सोनावले, रामपुर, कलामबाड़ा, जयागावा, मिल्हे, डेहरी, खेवारे के लोग भी आते हैं।
नोटबंदी के बाद जहां तमाम जगहों पर कैश बनाम कैशलेश की बहस चल रही है, वहीं यह गांव नोटबंदी से हो रही परेशानियों का कारगर समाधान पेश करता दिख रहा है। धसई गांव में सबके पास जन-धन अकाउंट और डेबिट कार्ड है। गांव वाले वडा पाव से लेकर सब्जियों और घरेलू जरूरत के हर सामान की खरीदारी डेबिट कार्ड से कर सके, इसके लिए स्वाइप मशीनों की व्यवस्था की जा रही है।
‘प्लास्टिक मनी’ कैंपेन के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा की मदद ली जा रही है। बैंक ने गांव वालों के लिए मुफ्त में स्वाइप मशीन उपलब्ध कराने की सहमति दे दी है।